रफी खान की कलम से।
उधम सिंह नगर। जनपद का पुलिस महकमा अपने तेज तर्रार पुलिस कर्मियों की बदौलत और सिस्टम की तीसरी आंख LIU (local intelligence unit) स्थानीय खुफिया इकाई के सहारे बड़ते अपराधो पर काफी हद तक कंट्रोल करने में सफल रहा है जिसके नतीजे आज काशीपुर सहित जनपद उधम सिंह नगर के अधिकतर इलाको में अपराधी या तो अपनी राह बदल चुके है या फिर पलायन कर चुके है,निसंदेह इसमें एलआईयू ने एहम किरदार अदा किया है। लेकिन काशीपुर व आस पास के इलाको मे युवा वर्ग और छोटे बच्चो में नासूर की तरह पैबस्त हो रहा मादक पदार्थ (चरस स्मैक व नशेली इंजेक्शनों आदि) की अवैध सप्लाई,बिक्री और उसके इस्तेमाल को रोक पाना जहां सिविल पुलिस के लिए टेडी खीर साबित हो रहा है तो वही इसपर एलआईयू भी कोई कारगर काम नहीं कर पा रही है।
उत्तर प्रदेश के जनपदों से मादक पदार्थ लाकर ड्रग्स माफिया उत्तराखंड के तराई क्षेत्र ही नही बल्कि अब वह जिस तेजी से पहाड़ चढ़ रहे हैं, यह आने वाले समय में कितना घातक सिद्ध हो सकता है इसका इससे बड़ा सबूत किया होगा की बीते दिनों हल्द्वानी एक कार्यक्रम को पहुंचे डीजीपी अशोक कुमार ने स्वम गहरी चिंता व्यक्त कर पुलिस को इसपर ठोस कदम उठाने को निर्देशित किया।
उत्तराखंड में स्मार्ट पुलिसिंग की तत्परता को देखते हुए अब ड्रग्स माफिया भी स्मार्ट गिरी पर उतर आएं है मोहल्ला अल्ली खां, थाना साबिक समेत काशीपुर के कई इलाकों में इसकी बानगी आपको आसानी से देखने को मिल सकती है सूत्रों का कहना है की यहां नशेडियो की दुनियां में जहां एक रुपए वाली एक माचिस का रेट एक हजार रूपए तो वही दस रुपए की सिगरेट का रेट पांच सो रुपए है, जो स्थानीय ड्रग्स माफिया स्मैक की लती को चलते फिरते बेच कर प्रशासन की आंख में धूल झोंकने का और जनता में जहर घोलने का काम आसानी से कर रहें हैं।
यहां यह भी स्पष्ट कर दिया जाय की एक रुपए वाली माचिस एक हजार की और सिगरेट पांच सो की कैसे, दरअसल माचिस से तिल्लियां निकालकर उसमें एक हजार रूपए कीमत की स्मैक और सिगरेट में पांच सो रुपए कीमत की स्मैक छुपाकर बेचने का यह नायाब तरीका इस अवैध धंधे में लिप्त लोगों की इजाद है।
यही नहीं इन लोगो ने अब स्मार्ट पुलिसिंग से बचने के लिए अपने छोटे बच्चों और घर की महिलाओं को भी मादक पदार्थों की सप्लाई पहुंचाने में इस्तेमाल में लेना शुरू किया हुआ है।
यहां यह भी गौरतलब रहे के काशीपुर समेत जनपद उधम सिंह नगर के आला अधिकारी जहां नशे पर ताबड़तोड़ कार्यवाही के जरिए इस पर पूरी तरह रोक लगाने के लिए लाख जतन कर रहे हैं तो वहीं ड्रग्स माफिया भी लगातार इस गंदे धंधे को परवान चढ़ाने में मशगूल है। ऐसे में यदि क्षेत्र की लोकल इंटेलिजेंस यूनिट इस और विशेष ध्यान दे तो निसंदेह ऐसे लोगों पर पूर्ण रूप से पुलिस को नकेल कसने में आसानी होगी यही नहीं इनके द्वारा मासूम बच्चों के साथ साथ नौजवान तबके को जो नशे की गर्त में धकेला जा रहा है उन्हे बचाया भी जा सकता है।
पुलिस के आला अधिकारियों के लिए यहां गौरतलब बात यह भी हो कि आखिर कल तक रिक्शा चलाने और ठेला खींचने वाला व्यक्ति केसे आज 50-50 लाख के मकान में रहे रहा है अथवा इतनी रकम की संपत्ति अर्जित किए हुए है,दूसरी और यहां सवाल ये भी खड़ा होता है कि किसी पुलिस चौकी में जब कई वर्षो से पुलिस अधिकारी व कर्मचारी लगातार सेवाए दे रहें हैं तो आखिर उनकी नजर से बचकर ऐसे व्यक्ति केसे अपने गोरख धंधे को परवान चढ़ा पाने में सफल है। खेर वजह जो भी हो यदि सिस्टम की तीसरी आंख से किरणों की चमक तेज हो तो गंदे धंधे के अंधेरों को दूर करने में बड़ी कामयाबी हासिल हो सकती है।