रफ़ी खान / उत्तराखंड।
देवभूमि। भारत की राजनीति में लगभग 7 दशक तक अपना वर्चस्व कायम रखने वाले और हिंदुस्तान को दुनिया में अलग पहचान देने वाले स्व पंडित नारायणदत्त तिवारी जी का नाम एक ऐसा नाम रहा है जो उत्तराखंड ही नहीं देश के कोने कोने में जाना और पहचाना जाता था,तिवारी जी जेसी महान शख्सियत ने भारत के कई शहरों को नाम और पहचान दी है इसके बावजूद आज पंडित तिवारी का खुद का शहर जिससे वह कभी बेहद लगाव रखते थे अपनी दुर्दशा पर आसूं बहा रहा है।
जी हां हम बात कर रहे हैं उत्तराखंड के काशीपुर शहर की जो कभी स्वर्गीय पंडित नारायण तिवारी की कर्मभूमि हुआ करता था और उनके कार्यकाल में संपूर्ण भारत में खास भूमिका अदा किया करता था जिसकी वजह से काशीपुर का हर एक इंसान खुद को काशीपुर का बताते समय गर्व महसूस किया करता था,उत्तराखंड बनने के बाद काशीपुर को जो पहचान मिलनी चाहिए थी वह उसे न मिल सकी जिस कारण आज यह शहर सियासत की भेट चढ़ अपनी खस्ता हालत पर जिम्मेदार लोगों को कोसने के सिवाय और कुछ नही कर पा रहा है।
इस शहर की बदौलत लगभग पचास साल देश की और दुनिया की सियासत में ऊंचे ऊंचे पदों पर आसीन रहकर सेवा करने वाले तिवारी जी ने इस शहर को कभी तन्हा और बेयारो मददगार नहीं छोड़ा लेकिन आज उसी काशीपुर को उत्तराखंड बनने से लेकर आज तलक हर एक मुख्यमंत्री और स्थानीय विधायकों ने काशीपुर को नक्शे से धुंधला करने का ही काम किया है।
इस शहर की खूबसूरती मिटाने में जितना बड़ा हाथ सत्ताधारी नेताओ का रहा है तो उतना ही हाथ विपक्ष में बैठे उन नेताओ का भी है जो काशीपुर को बचाने के बजाय अपने अपने घरों को बचाने और संवारने में लीन है,काशीपुर के प्रति बड़े नेताओं की जलन का इससे बड़ा सुबूत और किया होगा कि इस शहर को उत्तराखंड के बुजुद में आने के बाद आज तक एक भी केबिनेट मंत्री नही दिया गया। उत्तराखंड में बारी बारी राज करने वाली दोनो ही पार्टियों ने अगर इस शहर को कुछ दिया है तो वह हैं आसूं और आज यह शहर अपनी दुर्दशा पर हर रोज आसूं बहाते पूछ रहा है आखिर किसको जिम्मेदार मानू सत्ता पर आसीन रहे नेताओ को,बीस साल से विधायक बन राज कर रहे बीजेपी के वरिष्ट नेता हरभजन सिंह चीमा को या तमाशगीन बने तमाशा देख रहे स्थानीय कांग्रेस नेताओ को या फिर उन सामाजिक सगठनों को जो मरीजों को एक सेब एक केला देकर अपनी समाज सेवा की इतिश्री करते आ रहे हैं या शहर में निवास करने वाली भोली भाली जनता को जो अपनी आवाज को बुलंद न कर कुंभकर्ण की नींद सोई पड़ी है। आखिर इस सबका जिम्मेदार कोन फैसला तो आपको ही करना है। एक बार फिर एक नहीं दो दो चुनाव लोगों के सरो पर हैं फिर वादे होंगे,फिर कसमें खाई जाएगी,फिर काशीपुर कागजी जिला बनेगा और जनता फिर ठगी जायेगी…. जागो…जागो आखिर कब तक सोए रहोगे।