रिपोर्टर मोहम्मद कैफ खान
रामनगर। की शांत वादियों में इन दिनों एक अलग ही शोर है—ये शोर है ग्रामीण महिलाओं के रोष का, जो अपने गांवों में शराब की नई दुकानें खुलने के विरोध में सड़कों पर उतर आई हैं। पटकोट और मालधन जैसे गांवों में महिलाएं हाथों में बैनर लिए सिर्फ विरोध नहीं कर रहीं, बल्कि सरकार की नीयत और नीति दोनों पर सवाल उठा रही हैं। धरना दे रहीं महिलाओं का कहना है, “हमने सरकार पर भरोसा किया था, लेकिन अब लग रहा है कि सरकार को हमारे बच्चों का भविष्य नहीं, शराब से मिलने वाला मुनाफा ज़्यादा प्यारा है।” एक महिला प्रदर्शनकारी ने गुस्से में कहा, “अगर बच्चों के जीवन के बदले सरकार को राजस्व चाहिए, तो हम हर मोर्चे पर खड़ी हैं। शराब नहीं बिकने देंगे, चाहे कुछ भी हो जाए।” बीते दिनों मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी द्वारा शराब दुकानों को बंद करने की घोषणा को लेकर उम्मीदें जगी थीं, लेकिन अब ग्रामीणों का कहना है कि यह वादा भी बाकी सियासी वादों की तरह ‘हवा’ हो गया है। “घोषणा तो हो गई, लेकिन दुकानों पर ताले नहीं लगे। उल्टा नई दुकानें खोल दी गईं। क्या यही है डबल इंजन सरकार की पारदर्शिता?” यह कहना है एक स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता का। पूर्व विधायक रणजीत सिंह रावत ने सरकार पर तीखा हमला करते हुए कहा, “जब से ये सरकार आई है, तब से स्कूल और अस्पताल बंद हो रहे हैं, लेकिन शराब की दुकानें दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ रही हैं।” उन्होंने प्रशासन को स्पष्ट चेतावनी दी, कि “अगर नई दुकानों को हटाया नहीं गया तो यह आंदोलन सिर्फ गांवों तक सीमित नहीं रहेगा।” पाटकोट में महिलाओं का गुस्सा इस हद तक बढ़ गया कि उन्होंने मुख्यमंत्री का पुतला फूंककर अपना विरोध दर्ज कराया। आंदोलनकारियों का कहना है कि सरकार की खामोशी अब बर्दाश्त के बाहर है।प्रशासन की चुप्पी और राजनीतिक प्रतिक्रियाओं की गैरमौजूदगी ने इस मुद्दे को और भड़का दिया है। गांव की महिलाएं अब सीधे-सीधे सरकार से सवाल कर रही हैं: “कब तक हमारे गांवों को शराब का बाजार बनाया जाएगा?”