रिपोर्टर मोहम्मद कैफ खान
रामनगर। सीटों का आरक्षण और आवंटन होते ही चुनावी मैदान में हलचल तेज हो गई है। प्रत्याशी जनता का ध्यान खींचने के लिए हर संभव कोशिश कर रहे हैं। शहर के हर कोने में बड़े-बड़े होर्डिंग्स, पोस्टर और बैनर लगाए जा रहे हैं। प्रचार का तरीका बदल गया है, लेकिन जनता की अपेक्षाएं अब भी वही हैं—असल काम और ईमानदारी। इस बार प्रचार के दौरान कई रोचक और आकर्षक नारे देखने को मिल रहे हैं:
“अबकी बार नेता नहीं, बेटा चुनो”
“सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास”
“शिक्षित, कर्मठ, और योग्य उम्मीदवार चुनें”
इन नारों के माध्यम से प्रत्याशी खुद को जनता का सही प्रतिनिधि साबित करने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन क्या ये नारे जनता का विश्वास जीतने में सक्षम होंगे?
अब जनता केवल नारों और वादों पर भरोसा करने वाली नहीं है। हर वर्ग के लोग उम्मीदवारों के कामकाज और उनके पुराने रिकॉर्ड को परख रहे हैं। मतदाता कहते हैं, “हम अब केवल सुनेंगे नहीं, देखेंगे कि किसने वास्तव में काम किया है।”प्रत्याशियों के होर्डिंग्स और नारों से शहर सज चुका है, लेकिन जनता की प्राथमिकता कुछ और है। लोग रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य, और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों पर प्रत्याशियों का रुख जानना चाहते हैं। एक युवा का कहना है, “हमें बड़ी-बड़ी बातें नहीं, जमीनी बदलाव चाहिए।” जनता की मांग: अब खाली वादे नहीं, ठोस काम चाहिए
वोटर्स का कहना है कि उन्हें ऐसे नेता चाहिए जो प्रचार में नहीं, बल्कि जनता की समस्याओं के समाधान में ऊर्जा लगाएं। चाहे सड़क, पानी, बिजली हो या अपराध और भ्रष्टाचार का सवाल, लोग ठोस परिणाम चाहते हैं। हर बार की तरह इस बार भी प्रचार के लिए करोड़ों खर्च हो रहे हैं। लेकिन जनता के मन में यह सवाल गूंज रहा है कि क्या ये प्रचार उनकी समस्याओं को हल कर पाएंगे? इस बार का चुनाव प्रचार न केवल प्रत्याशियों के लिए, बल्कि जनता के लिए भी एक बदलाव का संकेत है। नारों और प्रचार के बीच अब जनता की आवाज ज्यादा मजबूत हो रही है। देखना यह है कि इस बार जनता केवल वादों में उलझेगी या सच में बदलाव के लिए मतदान करेगी।