Tuesday, January 21, 2025
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चुनावी वादे बनाम वास्तविकता – क्या प्रत्याशी पांच साल तक जनता के बीच रहेंगे?

रिपोर्टर: मोहम्मद कैफ खान

रामनगर। चुनाव का माहौल गरम है और हर गली-चौराहे पर प्रत्याशियों की आवाजाही तेज हो गई है। हर उम्मीदवार जनता के बीच अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हुए वादों की झड़ी लगा रहा है। लेकिन सवाल यह है कि क्या ये प्रत्याशी चुनाव जीतने के बाद भी जनता के बीच उनकी समस्याओं का समाधान करते रहेंगे, या फिर पांच साल के लिए रामनगर से गायब हो जाएंगे? जनता के सवाल और प्रत्याशियों का भरोसा चुनाव के दौरान प्रत्याशी घर-घर जाकर लोगों से मिल रहे हैं। वे हर संभव कोशिश कर रहे हैं कि जनता उनके वादों पर विश्वास करे। एक स्थानीय निवासी, राकेश शर्मा का कहना है, “हर चुनाव में हमें बड़े-बड़े वादे सुनने को मिलते हैं, लेकिन जीतने के बाद प्रत्याशियों को जनता की याद नहीं रहती। हमें अब समझदारी से सोचना होगा।” रामनगर के निवासियों का कहना है कि पिछले चुनावों में भी ऐसे ही बड़े-बड़े वादे किए गए थे। लेकिन, उनके मुताबिक, “जैसे ही चुनाव खत्म हुआ, नेता गायब हो गए। समस्याएं वहीं की वहीं रह गईं।” पानी, सड़क, और सफाई जैसी मूलभूत जरूरतें अब भी अनसुलझी हैं। चुनावी प्रचार के बीच, एक और स्थानीय निवासी, सुनीता देवी ने कहा, “नेताओं को हर दिन हमारे बीच आना चाहिए, न कि सिर्फ चुनाव के समय। जनता को अब यह सवाल पूछना चाहिए कि वे पांच साल तक हमारे लिए क्या करेंगे।” राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि अगर जनता अपने प्रत्याशियों से पांच साल की योजनाओं का विवरण और उनके लिए जवाबदेही की मांग करेगी, तो नेतृत्व में सुधार हो सकता है। चुनावी वादों के बजाय जमीनी काम पर जोर देने की जरूरत है।जनता को करना होगा जागरूक रामनगर के नागरिकों को चाहिए कि वे न केवल वादों पर ध्यान दें, बल्कि उन पर अमल करने की योजना भी पूछें। “चुनाव जीतने के बाद आपकी प्राथमिकताएं क्या होंगी?” जैसे सवाल अब हर प्रत्याशी से पूछे जाने चाहिए। रामनगर की जनता को अब सतर्क और जागरूक होना होगा। चुनावी वादों से परे, उन्हें यह तय करना चाहिए कि वे ऐसे नेतृत्व को चुनें, जो उनके बीच रहकर उनकी समस्याओं का समाधान करे। चुनाव केवल एक दिन का नहीं, बल्कि पांच साल के नेतृत्व का सवाल है।

तो क्या रामनगर के प्रत्याशी वादों से आगे बढ़कर जनता के बीच उनकी समस्याओं का समाधान करेंगे, या फिर गायब हो जाएंगे? यह सवाल हर वोटर को खुद से पूछना चाहिए।

Rafi Khan
Rafi Khan
Editor-in-chief
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