रिपोर्टर: मोहम्मद कैफ खान
रामनगर। नगर पालिका चुनाव में इस बार मुकाबला बेहद दिलचस्प हो गया है। पूर्व चेयरमैन हाजी अकरम और पहली बार राजनीति में कदम रखने वाले भुवन पांडे अपने-अपने दमखम के साथ जनता के बीच सक्रिय हैं। यह लड़ाई सिर्फ हाजी अकरम और भुवन पांडे के बीच नहीं, बल्कि कांग्रेस के दो बड़े गुटों – हरीश रावत और रंजीत रावत के बीच शक्ति प्रदर्शन बन गई है। लेकिन इस गुटबाजी का फायदा क्या बीजेपी उम्मीदवार को हो सकता है?पूर्व चेयरमैन हाजी अकरम के पास अनुभव और जनता के बीच एक मजबूत पहचान है। उनके समर्थकों का दावा है कि उनकी प्रशासनिक क्षमता और जनता के लिए किए गए काम इस बार भी उन्हें विजयी बनाएंगे। हाजी अकरम का कहना है, “मैंने पहले भी रामनगर की जनता के लिए काम किया है और आगे भी करूंगा। मेरे लिए यह चुनाव सेवा का अवसर है।”भुवन पांडे पहली बार राजनीति में कदम रख रहे हैं, लेकिन उनके पास जोश और जनता से सीधे जुड़ने की रणनीति है। उनके समर्थकों का मानना है कि रामनगर को अब एक नया नेतृत्व चाहिए। भुवन पांडे का कहना है, “यह समय बदलाव का है। मैं रामनगर को विकास की नई ऊंचाइयों पर ले जाने के लिए प्रतिबद्ध हूं।” यह चुनाव कांग्रेस के अंदरूनी गुटबाजी को भी उजागर करता है। हरीश रावत गुट और रंजीत रावत गुट दोनों अपने-अपने प्रत्याशियों को जिताने के लिए पूरी ताकत झोंक रहे हैं। हरीश रावत गुट: हाजी अकरम को समर्थन देकर अपनी राजनीतिक पकड़ मजबूत करने की कोशिश कर रहा है। वहीं रंजीत रावत गुट: भुवन पांडे को सामने लाकर कांग्रेस में नई पीढ़ी को आगे बढ़ाने की कोशिश में है।
कांग्रेस के दो गुटों के बीच चल रही इस खींचतान का सीधा असर जनता की प्राथमिकताओं पर पड़ सकता है। स्थानीय विश्लेषकों का मानना है कि यदि यह गुटबाजी चुनाव तक जारी रहती है, तो इसका फायदा सीधे बीजेपी उम्मीदवार को हो सकता है। बीजेपी के प्रत्याशी इस गुटबाजी के बीच चुपचाप अपने वोट बैंक को मजबूत करने में लगे हैं। एक स्थानीय निवासी, नितिन जोशी का कहना है, “कांग्रेस की गुटबाजी से जनता का ध्यान विकास से हटकर नेताओं के आपसी झगड़ों पर जा रहा है, और इसका सीधा फायदा बीजेपी को मिल सकता है।”जनता के बीच यह चर्चा गर्म है कि हाजी अकरम का अनुभव भारी पड़ेगा, भुवन पांडे का नया जोश काम आएगा, या फिर कांग्रेस की इस गुटबाजी का फायदा बीजेपी को मिल जाएगा। रामनगर का यह चुनाव न केवल क्षेत्र का भविष्य तय करेगा, बल्कि कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति और बीजेपी के लिए संभावनाओं को भी परिभाषित करेगा। जनता का फैसला ही तय करेगा कि हाजी अकरम और भुवन पांडे के बीच कौन विजयी होगा, या फिर बीजेपी इस लड़ाई का फायदा उठाकर नैय्या पार लगाएगी।