पहाड़ों में निवास करने वाले लोगों की जिंदगी भले ही देखने में बहुत सुंदर लगती हो लेकिन पहाड़ पर अपना जीवन यापन करने वाला परिवार कितनी कठिनाइयों से गुजरता है इसका शायद अहसास अभी प्लेन (समतल) में निवास करने वाले आम इंसान को नहीं,दुर्गम क्षेत्रों में आशियाना बनाने के बावजूद भी लोग महफूज नहीं हो पाते हैं जहां परिवारों को बसाने और सहूलियते देने को सरकारें बिजली,पानी,सड़के,अस्पताल और स्कूल जेसे तमाम सुविधाओ में बेतादाद रुपया खर्च करती है तो वही पहाड़ या आसमान के किसी कोने से उठी एक आपदा पल में सबकुछ समेट ले जाती है,वही हम मंदिर मस्जिद, तेरा मेरा की राजनीत में मशगूल है आखिर ऐसे पगनो जेसे ही तमाम दर्दमंदो के दर्द को समझने को इंसानियत की राजनीति कब होगी।
रफ़ी खान / उत्तराखंड।
उत्तराखंड के जोशीमठ में ऐसा ही एक गांव है पगनो,यह गांव पिछले 3 सालो से भूस्खलन का दंश झेल रहा है हर समय गांव में खतरे का पहाड़ लटक रहा है,भूस्खलन से सड़के टूट चुकी है,बिजली पानी की व्यवस्था चौपट है।इस गांव में कुल 123 परिवार निवास करते हैं जिसमें से 50 परिवार खतरे की जद में हैं और 12 परिवारों के आशियाने पूरी तरह से जमीदोज हो चुके हैं। बड़े खतरे से लोगो को बचाने की गरज से प्रशासनिक अधिकारियों ने गांव में रहने वाले सभी लोगों से किराए पर चले जाने को कह दिया गया है क्योंकि ग्रामीणों के पास गांव में जाने के लिए एकमात्र रास्ता पहाड़ पर चढ़ना बचा हुआ है जिसमे बड़ा खतरा बना हुआ है ग्रामीण एक कच्चे पहाड़ को पार करके गांव तक पहुंच रहे हैं।
गांव छोड़कर किराए पर जाने की बात पर ग्रामीणों का कहना है कि वह अपनी पुश्तैनी जमीन छोड़कर कहां जाएं गांव के अधिकांश लोगों का रोजगार खेत खलियान ही है। किसी दूसरे स्थान पर जाकर खेती खलियान संभव नहीं है लोग बेरोजगार हो जाएंगे। आपदा पीड़ित परिवारों का कहना है कि उनके पास उनके अपने मवेशी भी है जो की किराया के घरों में कैसे रहेंगे जो कि संभव नहीं है।